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छलनी ने लाइक बटन नेल दियासलाई लेली तो कोई उसकी बात नहीं सुनता। सब उसे देखती हैं और आगे बढ़ जाती हैं। किसी समय एक खतरे धारी व्यक्ति वहां से जाती दिखाई देती है। ये मजदूर नेता पंडित राज किशोर हैं। बसंत उन्हें देखकर उनके पीछे भागता है। साहब बचा लीजिए देसी बटन साहब दियासलाई लीजिए नहीं भाई कुछ नहीं चाहिए साहब एक तो लीजिए दीक्षित बटन कितनी सस्ते हैं। भाई मुझे कुछ नहीं चाहिए। जाओ किसी और को दो साहब छन्नी लीजिए दूध छानी चाय छानी। मुझे नहीं चाहिए बटन नहीं नहीं कराई। नहीं नहीं साहब। छल्ली ले लीजिए सिर्फ दो रुपये पच्चीस पैसे कीमत हैं। पर भाई मुझे नहीं चाहिए तो क्यों लूं। अच्छा आप दो रुपये ही दे दीजिए। ओहो कह दिया मुझे कुछ नहीं चाहिए साहब। सबेरे से अब तक कुछ नहीं बिका। आपसे आशा थी साहब एक तो ले लीजिए तुम तो अच्छे तुम्हें पैसे चाहिए लो यह एक रुपया और जाओ नहीं साथ नहीं। मैं पैसे नहीं लूंगा नहीं लोगे जी नहीं आप छलनी खरीद लीजिए अच्छा एक छलनी में तुम्हें क्या बचेगा।
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